( तर्ज - हमारे जीय हिन्दुओ बनाओ ... )
प्रभु हाजीर है हरदम,
कहाँ ढूंढनको जाता है ।
जो रखता साच अपना दिल ,
वही उसको सुहाता है || टेक ||
न मिलता देवलों अंदर ,
न पाता मंदिरों भीतर
खडा रहता वहाँ आकर ,
दीन जहाँ लौ लगाता है ॥१ ॥
ऋषी और तापसी देखे ,
तपस्या साध कर जिसको ।
गरिबों के घरों भीतर ,
सदा ही दुख उठाता है ॥ २ ॥
रमा घटघटमें वह सबके ,
करो पूजा स्वकर्मोसे ।
जो हिंसक दीन जीवोंका ,
उसे कबहूँ न भाता है || ३ ||
रखो गर लाज दीनोंकी ,
करो सेवा पतितोंकी ।
तो आपही आप पाता है ,
नजरमें चश्म छाता है ॥४ ॥
वो तुकड्यादासकी आशा ,
मिटे ऐसी मिटानेपर ।
समादो देह सेवामे,
तो बेडा पार होता है ॥ ५ ॥
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